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अध्याय 8. प्रायश्चित
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मुखपृष्ठ | पिछला पाठ | अगला पाठ

निर्गमन 32: 1 – 16

1 जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?”

2 हारून ने उनसे कहा, “तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियाँ हैं उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ।”

3 तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए।

4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया*, और टाँकी से गढ़ा। तब वे कहने लगे, “हे इस्राएल तेरा परमेश्‍वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है।”

5 यह देखकर हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा।”

6 और दूसरे दिन लोगों ने भोर को उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।

7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, वे बिगड़ गए हैं;

8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैंने उनको दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, ‘हे इस्राएलियों तुम्हारा परमेश्‍वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है’।”

9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं।

10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूँ; परन्तु तुझसे एक बड़ी जाति उपजाऊँगा।”

11 तब मूसा अपने परमेश्‍वर यहोवा को यह कहकर मनाने लगा, “हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है?

12 मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएँ, ‘वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया?’ तू अपने भड़के हुए कोप को शान्त कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुँचाने से फिर जा।

13 अपने दास अब्राहम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिनसे तूने अपनी ही शपथ खाकर यह कहा था, ‘मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूँगा, और यह सारा देश जिसकी मैंने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूँगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें’।”

14 तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उसने कहा था पछताया।

15 तब मूसा फिरकर साक्षी की दोनों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों ओर लिखा हुआ था।

16 और वे तख्तियाँ परमेश्‍वर की बनाई हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्‍वर का लिखा हुआ था।

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कल्पना कीजिए कि आप एक भूकंप, एक जंगल की आग, और बिजली का अनुभव कर रहे है- सभी एक ही समय में। बिल्कुल डरावना। ऐसा ही हुआ जब परमेश्वर सीनाई पर्वत पर उतरे (निर्गमन 19:16-20)। मूसा ने लोगों को परमेश्वर से मिलने के लिए इकट्ठा कर लिया था । परन्तु उनकी आश्चर्यजनक उपस्थिति के आतंक को महसूस करते हुए, लोगों ने मूसा से विनती की, “तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ” (20:19)|

मूसा चालीस दिन और चालीस रात के लिए चला गया था (निर्गमन 24:18), और उस समय के अंत तक, लोग प्रतीक्षा करते हुए ऊब चुके थे। देरी से थककर वे मूसा के भाई हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि क्या हुआ?” (32:1)|

छह सप्ताह से भी कम समय हुआ था जब परमेश्वर ने लोगों को मूर्ति ना बनाने की आज्ञा दी थी। परन्तु पहले से ही परमेश्वर की सुनी हुई आवाज़ का प्रभाव फीका पड़ गया था, और उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना कर दी। आप पिछले आध्यात्मिक अनुभव पर नहीं जी सकते। पिछला अनुभव कभी भी वर्तमान आज्ञाकारिता का विकल्प नहीं हो सकता।

एक नया धार्मिक आंदोलन

मूसा का उत्तराधिकारी बनने के लिए हारून स्वाभाविक पसंद की तरह लग रहा था। उसके पास पहले से ही एक मान्यता प्राप्त सेवकाई थी, और जब परमेश्वर के लोग उसके पास आए, तो उन्होंने उसे आगे बढ़ाने और नेतृत्व करने के लिए तैयार पाया।

हारून का पहला कदम अपनी नयी मंडली के शुभारंभ के लिए धन जुटाना था। लोगों ने अपने गहने दान किए, और इन उपहारों से उसने एक सोने के बछड़े को आकार दिया। हारून उन लोगों का दुखी पिता बन गया जिनकी सेवकाई मुख्य रूप से इस सवाल से प्रेरित थी कि “लोग क्या चाहते हैं?

सेविकाई को बाजार के सिद्धांतों पर चलाने की अनुमति, शीघ्रता से मूर्तिपूजा की ओर ले जाती है।

बेशक, हारून यह दावा करना चाहता था कि वह जो कुछ कर रहा था वह रूढ़िवाद की सीमा के भीतर है, और इसलिए उसने कहा, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा” (32:5) | परन्तु हारून का त्योहार आत्म-अभिव्यक्ति के एक अनुग्रहकारी वाहन से ज्यादा कुछ नहीं था ।

और दूसरे दिन “लोगों ने बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे (32:6)। दूसरे शब्दों में, जैसे जैसे शराब बाहर आयी लोगों के कपड़े उतरने लगे। यह एक बड़ा उत्सव था, परन्तु वह गलत देवता की पूजा कर रहे थे।

यह ठहर कर सोचने योग्य है कि आज का एक पत्रकार इस समाचार को किस तरह प्रस्तुत कर सकता है। आखिरकार, सुनहरा बछड़ा विश्व धर्म पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए एक महान विषय बन सकता था: “यहां सिनाई रेगिस्तान में, एक उल्लेखनीय नए धार्मिक आंदोलन का जन्म हुआ,” हमारा पत्रकार इस प्रकार से समाचार शुरू करेगा।

“लोगों ने पूजा करने की एक नयी अभिनव शैली को अपनाया जो की काफी रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति से भरी है”। फिर उत्साही नर्तकियों के साथ कुछ साक्षात्कार होंगे, जो कहेंगे कि सुनहरे बछड़े का त्योहार उनके लिए काफी मान्यता से भरा था।

दल को तोड़ना

लोगों ने शायद सोचा होगा कि इसका कोई अर्थ होगा, परन्तु परमेश्वर के लिए यह घृणित था । परमेश्वर के लोगों ने उनकी पहली आज्ञाओं में से एक को तोड़कर खुद को भ्रष्ट कर लिया था। यह इतनी जल्दी और इतने खुलेआम हुआ कि परमेश्वर इन लोगों का सफाया करने और मूसा के साथ फिर से शुरू करने के लिए तैयार थे: “अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूँ; परन्तु तुझसे एक बड़ी जाति उपजाऊँगा” (32:10)|

लोगों के पास लौटने के बाद मूसा का पहला काम हारून से सामना करना था तब मूसा हारून से कहने लगा, “इन लोगों ने तेरे साथ क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फँसाया?” (32:21) क्या लोगों ने हारून को कोई भयानक यातना दी थी? वास्तव में, सार्वजनिक मांग ने उसे परमेश्वर की व्यवस्था की अवज्ञा करने के लिए उसे उकसाया था। वह उन्हें पाप की ओर ले गया क्योंकि वह महसूस की गई जरूरतों और बाजार की ताकतों के दबाव का विरोध करने में असमर्थ था।

हारून ने जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया। उसने सोने को एक मूर्ति के रूप में “गोदनेवाले उपकरण के साथ” आकार दिया था ( 32:4), परन्तु जब मूसा ने अपने भाई को चुनौती दी, तो हारून ने कहानी का साफ सुथरा विवरण दिया: “तब मैं ने उनसे कहा, ‘जिस जिसके पास सोने के गहने हों, वे उनको उतार लाएँ; और जब उन्होंने मुझ को वह दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा” ( 32:24)। बस यह अपने आप हो गया !

अपने भाई का सामना करने का कोई फायदा ना होने के बाद, मूसा ने लोगों को एक निर्णय लेने के लिए बुलाया: “जो कोई यहोवा की ओर का है वह मेरे पास आए;” (32:26)। हर किसी को पश्चाताप करने का अवसर दिया गया था, और भारी बहुमत से लोगों ने पश्चाताप किया।

प्रायश्चित का अर्थ

दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुम ने बड़ा ही पाप किया है (32:30)। ये लोग पहले से ही जानते थे कि उन्होंने पाप किया था, और उन्होंने पश्चाताप भी किया था! तो फिर मूसा ने अगले दिन उठकर क्यों कहा, “तुमने बहुत बड़ा पाप किया है? फिर क्षमा का क्या हुआ?

मूसा ने इस बात को स्पष्ट रूप से क्यों नहीं समझाया ? क्या यह उसका कर्तव्य नहीं था कि वे उन्हें बताएं कि उन्हें माफ कर दिया गया है? इन लोगों को खेद है। मूसा उनसे और क्या चाहता है? और क्या यह परमेश्वर का कर्तव्य नहीं है कि वह उन्हें क्षमा करें ? नहीं। पापों को क्षमा करने से पहले कुछ और भी होना चाहिए ।

कहानी में इस पड़ाव पर, हम बाइबिल के शब्द प्रायश्चित की खोज करते हैं। मूसा ने लोगों से कहा, “अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊँगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित कर सकूँ” ( 32:30)। जो गलत है उसे सही करने के लिए प्रायश्चित करना पड़ता है। जहां कहीं कोई अपराध होता है, हम प्रायश्चित के प्रश्न का सामना करते हैं। चीजों को सही करने के लिए क्या करना होगा?

सिर्फ क्षमाप्रार्थी होने से नहीं होगा

एक पादरी कहते हैं, एक बार जब वें कॉलेज में एक फुटबॉल मैच खेल रहे थे, तो दूसरी टीम ने गोल पर एक सफलता हासिल की, और वे आखिरी डिफेंडर थे । हताशा में, वें गोल लाइन से गेंद का सफाया करने में कामयाब रहे।

दुर्भाग्य से, गेंद कॉलेज के अध्यक्ष के अध्ययन कक्ष की ओर बढ़ी और उनकी खिड़की को तोड़ दिया। अध्यक्ष इस बारे में उल्लेखनीय रूप से दयालु थे – परन्तु उन्हें यह आवश्यकता थी कि पादरी खिड़की को बदलें और सारी गंदगी को साफ करें। इसे सही करने के लिए इस कार्य की आवश्यकता थी ।

प्रायश्चित के बारे में समझने वाली पहली बात यह है कि इसकी आवश्यकताओं को हमेशा घायल पक्ष द्वारा निर्धारित किया जाता है। टूटी हुई खिड़की के पास पादरी को अपनी गंदी निक्कर में वहाँ खड़े होकर, उन्हें नहीं लगा कि उनके पास बहुत अधिक सौदेबाजी की शक्ति थी!! “उन्हें बहुत खेद है,” उन्होंने कहा । यह अच्छा था, परन्तु यह पर्याप्त नहीं था। नुकसान हो चुका था, और इसे ठीक किया जाना था। वे कहना चाहता था, “मैं ऐसा फिर से नहीं करूंगा,” परन्तु इसका भी कुछ ज्यादा फायदा नहीं होता ।

“तुम्हें यह करने की ज़रूरत है, ” अध्यक्ष ने कहा । “गंदगी को साफ करो और खिड़की को बदलो” । यह प्रायश्चित था, वह कीमत जो चीजों को सही बनाने के लिए चुकानी थी। परमेश्वर के खिलाफ हमारी गलतियों को सही करने के लिए क्या करना होगा?

कुछ लोगों को लगता है कि सिर्फ क्षमाप्रार्थी होना हर चीज़ का समाधान है। उन्हें लगता है कि अगर हम वास्तव में पश्चाताप करते हैं और वास्तव में बदलने की कोशिश करते हैं, तो परमेश्वर के साथ हमारी सभी चीजें सही हो सकती हैं। परन्तु सिर्फ क्षमाप्रार्थी होना काफी नहीं है। लगभग बीस लाख लोगों ने पश्चाताप किया था, और फिर भी एक समस्या थी। हमने जो किया है उसके लिए खेद व्यक्त करने से हमारे पाप का दोष दूर नहीं होगा । हमें प्रायश्चित की आवश्यकता है।

एक महान नेता यह नहीं कर सकता

शायद प्रायश्चित करना कुछ ऐसा था जो मूसा कर सकता था? वह फसह के मेमने की मृत्यु से जानता था कि परमेश्वर लोगों के जीवन को बचाने के लिए एक विकल्प को स्वीकार करने के लिए तैयार थे। क्या होगा अगर मूसा इसका विकल्प हो सकता हो तो?

मूसा ने लोगों से कहा, “अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊँगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित कर सकूँ” ( 32:30)। तो हमारे पास एक स्वयंसेवक है! पुराने नियम के सबसे महान आध्यात्मिक गुरु ने आगे बढ़कर परमेश्वर से कहा, “हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। तौभी अब तू उनका पाप क्षमा कर-नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे ” (32:31-32) | मूसा लोगों के लिए अपना प्राण त्यागने को भी तैयार था। और यदि उसे लोगो के खातिर प्रायश्चित करने के लिए नरक में प्रवेश करना पड़ता, तो वह ऐसा करने के लिए भी तैयार था।

परन्तु परमेश्वर ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया: “कोई सौदा नहीं, मूसा । प्रायश्चित करना तुम्हारे बस से बाहर है”। मूसा के अपने खुद के पाप थे, और जो व्यक्ति अपने स्वयं के पापों के साथ हो, वह दूसरों के पापों के लिए प्रायश्चित करने की स्थिति में नहीं हो सकता। इन लोगों के लिए जीवन चलता रहेगा, परन्तु बिना प्रायश्चित के, वे परमेश्वर की उपस्थिति को खो देंगे (33:3) |

जब लोगों ने यह सुना, वे लोग विलाप करने लगे (33:4) | अब वे सबसे निजी तरीके से सबसे बुनियादी सवाल का सामना कर रहे थे : “परमेश्वर की उपस्थिति को वापस लाने के लिए क्या करना होगा? यदि क्षमा प्रार्थी होने से कुछ नहीं होगा, और यदि मूसा कुछ नहीं कर सकता है, तो हमारे पापों के प्रायश्चित करने के लिए क्या करना होगा?

श्रमसाध्य आज्ञाकारिता यह नहीं कर सकेगी

शायद परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने के लिए एक गंभीर समर्पण परमेश्वर की उपस्थिति को वापस ला सकेगी? निर्गमन 25-30 में परमेश्वर ने तम्बू बनाने के लिए सटीक आज्ञाएँ दीं थी, और निर्गमन 36-39 हमें बताता है कि परमेश्वर के लोगों ने इन आज्ञाओं का सावधानीपूर्वक विस्तार से पालन किया। परमेश्वर के लोगों ने ठीक वैसा ही किया जैसा कि उन्हें करने के लिए कहा गया था: “जिस जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्राएलियों ने उसी के अनुसार किया” ( 39:32)।

कल्पना कीजिए कि एक महिला तम्बू के पर्दो पर सिलाई कढ़ाई कर रही है। जैसे वह परमेश्वर के विस्तृत निर्देशों का पालन करती है, वह सोचती है, “यदि मैं आज्ञाकारी हूँ, तो शायद परमेश्वर हमारे पास वापस आ जाएँ। एक बढ़ई की कल्पना कीजिए जो चाहता है कि काश उसने प्रभु को कभी दुखी न किया होता। वह सोचता है, यदि मेरे हाथ परमेश्वर की आज्ञा को पूरा कर सकते हैं, तो शायद वह हमें फिर से आशीष दे सकें।

परमेश्वर के लोगों ने खुद को सावधानीपूर्वक आज्ञाकारिता के लिए समर्पित कर दिया था, परन्तु इन सब के बाद भी परमेश्वर की उपस्थिति के लौटने का कोई संकेत नहीं था। उन्होंने सोचा होगा कि परमेश्वर के साथ चीज़ों को सही बनाने के लिए क्या करना होगा।

एक योग्य बलिदान यह कर सकेगा

सात महीने बाद, जिसमें लोग परमेश्वर की उपस्थिति के लौटने के लिए तरस रहे थे, मूसा ने उन्हें बताया कि यह कैसे हो सकता है: “यह वह काम है जिसके करने के लिये यहोवा ने आज्ञा दी है कि तुम उसे करो; और यहोवा की महिमा का तेज तुम को दिखाई पड़ेगा” (लैव्यव्यवस्था 9:6)। वहाँ एक स्तब्ध सन्नाटा छा गया होगा क्योंकि लोग यह सुनने के लिए इंतजार कर रहे थे कि वह क्या कहेगा ।

तब मूसा ने हारून से कहा, “यहोवा की आज्ञा के अनुसार वेदी के समीप जाकर अपने पापबलि और होमबलि को चढ़ाकर अपने और सब जनता के लिये प्रायश्चित कर; और जनता के चढ़ावे को भी चढ़ाकर उनके लिये प्रायश्चित कर” ( 9:7 ) । परमेश्वर की उपस्थिति और आशीष तभी वापस आ सकती थी जब प्रायश्चित किया गया हो।

हारून ने वैसा ही किया जैसा परमेश्वर ने आज्ञा दी थी। लोगों ने अपनी साँसें रोक राखी होंगी क्योंकि यह देखने के लिए इंतजार कर रहे थे कि क्या होने वाला है: “तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू में गए, और निकलकर लोगों को आशीर्वाद दिया; तब यहोवा का तेज सारी जनता को दिखाई दिया” (9:23) । परमेश्वर वापस आ गए थे! “और इसे देखकर जनता ने जय जयकार का नारा लगाया और अपने अपने मुँह के बल गिरकर दण्डवत् किया” (9:24)।

कल्पना कीजिए कि एक दंपति अपने तम्बू में बैठे हैं, उन्होंने जो कुछ भी अभी देखा उसके बारे में बात कर रहे हैं: “मैंने कभी भी ऐसा कुछ नहीं देखा है, ” पति ने बोला । किसने कल्पना की होगी एक जानवर का खून बहाने से परमेश्वर की उपस्थिति वापस आ जाएगी?”

“हाँ, यह अविश्वसनीय है,” वह कहती है। परन्तु मुझे समझ में नहीं आता कि बलिदान ने ऐसा क्या किया जब क्षमाप्रार्थी होने के उन सभी महीनों, और आज्ञाकारिता के उन सभी महीनों, और यहां तक कि मूसा के हमारे लिए अपना जीवन देने के प्रस्ताव का भी कोई फर्क नहीं पड़ा । जरूर इस बलिदान में कुछ बहुत शक्तिशाली बात है जिसमें रक्त का बहाव शामिल है।

बाइबल की कहानी के इस शुरुआती चरण में भी, परमेश्वर यीशु के आने की तैयारी कर रहे थे। पुराने नियम में बलिदानों का पूरा उद्देश्य हमारी सोच को आकार देना था ताकि हम समझ सकें कि परमेश्वर के पुत्र को दुनिया में क्यों आना पड़ा। क्रूस पर अपनी मृत्यु से, यीशु ने वह पूरा किया जो पुराने नियम के बलिदान केवल अनुमान लगा सकते थे। मसीह ने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया। वह उन सभी के लिए परमेश्वर की उपस्थिति और आशीर्वाद को वापस लाता है जो उस पर भरोसा करते हैं।

हो सकता है कि आपको लगे कि अगर आपको अपने पापों के लिए पर्याप्त खेद है, तो आप परमेश्वर के साथ सही होंगे। या हो सकता है कि आपको लगे कि यदि आपके कलीसिया में भाग लेने से और अपनी प्रार्थनाओं को कहने से, आप अपने पापों के लिए प्रायश्चित कर सकते हैं। ये चीजें अच्छी हैं, परन्तु वे पर्याप्त नहीं हैं। यह यीशु का बलिदान और उसके लहू का बहना है जो परमेश्वर के साथ प्रायश्चित करता है। “और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है, और केवल हमारे ही नहीं वरन् सारे जगत के पापों का भी ” ( 1 यूहन्ना 2:2 ) ।

परमेश्वर के वचन के साथ और अधिक जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का प्रयोग करें। किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन प्रश्नों पर विचार विमर्श करें या इन प्रश्नों को आत्म विश्लेषण के लिए प्रयोग करें।

1. यदि आप परमेश्वर को अपनी दस आज्ञाएँ कहते हुए सुन सकते हैं, तो क्या इन आज्ञाओं को रखने के लिए यह आपकी पर्याप्त मदद करेगा? क्यों या क्यों नहीं?

2. क्या यह परमेश्वर का कर्तव्य है कि वह लोगों को क्षमा करे? क्यों या क्यों नहीं?

3. जब किसी व्यक्ति ने पाप किया हो, तो पर्याप्त रूप से खेद करने या पर्याप्त आज्ञाकारी होने से परमेश्वर की उपस्थिति वापस क्यों नहीं आए सकती? कैसे आ सकती हैं?

4. “प्रायश्चित” क्या है?

5. पुराने नियम में जानवरों के बलिदान और क्रूस पर यीशु के बलिदान के बीच क्या अंतर है?

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