क्रूस पर लटके हुए ड़ाकू की कहानी का प्रयोग मैंने कई बार लोगों को यह समझाने के लिए किया है कि यीशु कौन है, और वह उनके लिए क्या कर सकता है। उस ड़ाकू के जीवन का आखिरी दिन असाधारण था। उसके इस दिन की शुरुआत तो जेल की कोठरी के दुख से हुई, मगर इसका अंत स्वर्ग के आन्नद के साथ हुआ। किसी ने कहा है कि उस ड़ाकू ने शैतान के साथ नाश्ता किया और उद्धारकर्ता के साथ रात का खाना खाया। यह एक अद्भुत परिवर्तन है, और यह दिखाता है कि यीशु मसीह एक ही दिन में किसी व्यक्ति के लिए क्या कर सकता है!
इस ड़ाकू की कहानी असामान्य है, लेकिन यह कुछ ऐसा सिखाती है जिसे हर व्यक्ति को जानना अति आवश्यक है।
आपका स्वर्ग में प्रवेश करना आप पर निर्भर नहीं करता
स्वर्ग में प्रवेश करना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आप अपने मसीह जीवन में कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं। सोचिए कि क्रूस पर लटके उस ड़ाकू के साथ क्या हुआ, उसने यीशु मसीह पर विश्वास किया और उसी दिन स्वर्ग चला गया। इसका अर्थ है कि वह इस पृथ्वी पर मसीही जीवन जीने से पूरी तरह चूक गया। जिससे कि उसे किसी भी प्रकार के प्रलोभन का सामना नहीं करना पड़ा, और न ही प्रार्थना में कोई संघर्ष किया। उसे कभी बपतिस्मा लेने, प्रभु भोज में शामिल होने, कलीसिया में जिम्मेदारी निभाने या सेवकाई करने का अवसर नहीं मिला।
आपका स्वर्ग में प्रवेश करना आपके मसीही जीवन के प्रदर्शन पर निर्भर नहीं करता।
बहुत से लोग मानते हैं कि उनका स्वर्ग में प्रवेश करना उनके अच्छे और ईश्वरीय जीवन जीने पर निर्भर करता है। वे शायद विश्वास तो करते हों कि यीशु क्षमा करता है, लेकिन अंदर से उन्हें लगता है कि मसीही जीवन में उनकी प्रगति ही वह कुंजी है जो स्वर्ग का द्वार खोलेगी। यह संभवतः सत्य कैसे हो सकता है?
ड़ाकू स्वर्ग में कैसे पहुँचा
वह ड़ाकू एक मसीही जीवन जीए बिना ही स्वर्ग चला गया! उसके पास कुछ भी करने का अवसर नहीं था। उसके दोनों हाथ क्रूस पर ठुके होने के कारण वह किसी भी प्रकार के अच्छे काम करने की स्थिति में नहीं था। उसके दोनों पैर लकड़ी के लटठे पर कीलों से ठुके होने के कारण वह धार्मिकता के मार्ग पर नहीं चल सकता था। और अपनी मृत्यु के कुछ ही घंटो की दूरी पर होने के कारण, अब उसके पास जीवन में एक नया पृष्ठ खोलने और बेहतर जीवन जीने का समय नहीं था।
उस दिन ड़ाकू ने जो किया वह भ्रामक रूप से सरल था। वह यीशु की ओर मुड़ा और कहा, ‘‘जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना’’ और उसने यीशु के जवाब का इंतजार किया। उसके सभी बर्बाद हुए वर्षों के बाद, यदि यीशु उससे कहते कि तूने अपने जीवन के सारे वर्ष बुरे कामों में बर्बाद किए हैं, तो उसे आश्चर्य नहीं होता। उसे तो यीशु की इस बात पर भी आश्चर्य नहीं होता, कि ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि मेरे राज्य के बारे में सोचने में तुम्हें थोड़ी देर हो गई है?’’
कुछ ही मिनट पहले इस ड़ाकू ने यीशु पर जो घृणा प्रकट की थी, उसके बाद यदि यीशु ने कहा होता, ‘‘स्वर्ग का राज्य तुम्हारे जैसे लोगों के लिए नहीं है।’’ तौभी वह शिकायत नहीं कर सकता था। लेकिन यीशु का तरीका ऐसा नहीं है। यीशु ने ड़ाकू को प्रतिक्षा करने के लिए नहीं कहा, या उसे लंबी आध्यात्मिक यात्रा करने के लिए नहीं भेजा। और उसने यह भी नहीं कहा, कि ‘‘तुम्हें इंतजार करना होगा और देखते हैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।’’
इसके बजाय, यीशु ने ड़ाकू की प्रार्थना को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। यीशु ने उसे बिना किसी हिचकिचाहट या शर्त के, स्वतंत्र रूप से और खुशी से स्वीकार किया। और कहा ‘‘आमीन’’ और फिर, एक छोटे से विराम के बाद, ‘‘मैं तुझसे कहता हूँ, कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।’’
यदि यीशु उस ड़ाकू को बचा सकता था, जिसने स्पष्ट रूप से नैतिक जीवन नहीं जिया, तो यीशु में उस व्यक्ति के लिए भी आशा है जो परमेश्वर से बहुत दूर है। यीशु मसीह में हर व्यक्ति के लिए आशा है। यही हम उस ड़ाकू की कहानी से सीखते हैं।