अध्याय 30. परीक्षा हुई

मत्ती 4: 1 – 11

1 तब उस समय पवित्र आत्मा यीशु को एकांत में ले गया ताकि शैतान से उसकी परीक्षा हो।

2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। (निर्ग. 34:28)

3 तब परखनेवाले ने पास आकर उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।”

4 यीशु ने उत्तर दिया, “लिखा है, “‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, “परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”

5 तब शैतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया। (लूका 4:9)

6 और उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे*।’ ” (भज. 91:11-12)

7 यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है, ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर की परीक्षा न कर।’ ” (व्य. 6:16)

8 फिर शैतान उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर

9 उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा*।”

10 तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’ ” (व्य. 6:13)

11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे।


यीशु तीस वर्ष के थे जब उन्होंने अपनी सार्वजनिक सेवकाई शुरू की। जब उन्होंने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया, तो पवित्र आत्मा उन पर उतरा और स्वर्ग से एक सुनाई देने वाली आवाज़ ने कहा, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ” (मत्ती 3:17 ) । पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर, यीशु रेगिस्तान में चले गए, जहाँ उन्होंने चालीस दिनों तक गहन परीक्षा की अवधि सहन करी।

एक कार्यालय भवन की कल्पना करें जिसमें सैकड़ों कंप्यूटर एक नेटवर्क से जुड़े हुए है। यदि कोई दुश्मन पूरी इमारत को नष्ट करने का फैसला करता है, तो वह बड़ी आसानी से एक घातक कंप्यूटर वायरस तैयार कर सकता है, जो एक बार सर्वर में डालने के बाद, नेटवर्क पर हर मशीन में स्थानांतरित हो जाएगा। वायरस धीरे-धीरे प्रत्येक कंप्यूटर के हर कार्य को इस तरह से दूषित कर देगा कि, हालांकि कुछ हिस्से यथोचित रूप से अच्छी तरह से काम करेंगे, परन्तु कुछ भी पहले की तरह काम नहीं करेगा।

कंप्यूटर विशेषज्ञों को बुलाया जाएगा। परन्तु यदि कोई भी वायरस का इलाज नहीं खोज सका, तो पूरा सिस्टम भीतर से नष्ट हो जाएगा। दुश्मन को इमारत के हर कोने को व्यक्तिगत रूप से तोड़फोड़ करने की ज़रूरत नहीं होगी, क्योंकि नेटवर्क उसके लिए वायरस फैला देगा। एक वायरस प्रत्येक कोने को भ्रष्ट कर देगा, क्योंकि सभी मशीनें एक साथ नेटवर्क से जुड़ी हुई हैं।

परन्तु मान लीजिए कि एक कंप्यूटर नेटवर्क से नहीं जुड़ा है। जबकि कार्यालय की अन्य सभी मशीनें नष्ट हो गई हैं, एक अकेली मशीन वायरस की विनाशकारी शक्ति से मुक्त है । यदि दुश्मन इस मशीन को नष्ट करना चाहता है, तो उसे बाहर से उस पर हमला करना होगा जिसे वह अंदर से खराब नहीं कर सका।

कोई वायरस नहीं मिला

वह कंप्यूटर जो नेटवर्क से जुड़ा नहीं है, हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि कैसे यीशु पूरी तरह से मानव है और फिर भी पाप की भ्रष्ट शक्ति से मुक्त है जो मानव जाति के हर दूसरे सदस्य को प्रभावित करता है। उनके स्वभाव में पाप की ओर कोई प्रवृत्ति नहीं थी ।

इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या यीशु की परीक्षा वास्तविक थीं। हम अपनी ही बुरी अभिलाषा से फँस जाते हैं (याकूब 1:14)। परन्तु चूँकि मसीह का स्वभाव पापी नहीं था, तो वे हमारे संघर्ष को कैसे जान सकते थे?

बाइबल की कहानी से हम पहले ही जान चुके हैं कि पाप रहित होना और परीक्षा में पड़ना संभव है। जब आदम और हव्वा बगीचे में थे, तो प्रलोभन उनके भीतर से नहीं बल्कि बाहर से दुश्मन के सीधे हमले के माध्यम से आया था। और यीशु के प्रलोभनों में भी ऐसा ही था।

वायरस का प्रसार

जब हमने बगीचे में शैतान के हमले को देखा, तो हमने देखा कि उसने तीन रणनीतियों का इस्तेमाल किया : भ्रम पैदा करना, अनुमान भड़काना और महत्वाकांक्षा जगाना ।

यदि यह केवल एक प्राचीन कहानी होती, तो यह हमारी रुचि के लायक नहीं होती । परन्तु बगीचे में जो कुछ भी हुआ उसका सीधा परिणाम आज आपके और हमारे जीवन पर पड़ा है। जैसा कि प्रेरित पौलुस ने लिखा, “एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे” (रोमियों 5:19)।

मनुष्य समुद्र तट पर पड़े कंकड़ों के समान नहीं हैं; हम एक पेड़ पर लगे पत्तों की तरह हैं। रोग जड़ से निकलता है, और पाप का दाग हर पत्ते पर दिखाई देता है। हम असंबद्ध इकाइयाँ नहीं हैं; हम एक परिवार हैं, और हम एक ही वंश के वंशज हैं।

पादरी कहते हैं कि कुछ साल पहले उनके गृह देश लंदन में पैर और मुंह की बीमारी का बड़े पैमाने पर प्रकोप हुआ था। जैसे ही एक गाय में यह बीमारी पाई गई, पूरा झुंड वध के लिए नियत हो गया।

यह मानव जाति की दुःखद घटना है: “आदम में सब मरते हैं” (1 कुरिन्थियों 15:22 ) | आदम ने मानव जाति के मुखिया के रूप में पाप किया, और उसके पाप ने पूरे झुंड के लिए मृत्यु को ला दिया। इस समानता को बदलने के लिए, आदम के पाप के माध्यम से एक वायरस मानव नेटवर्क में प्रवेश कर गया है और हर कोने तक खुद को संचारित कर चुका है। और कोई सुरक्षा चक्र नहीं है।

दुश्मन का पीछा करना

परमेश्वर सदैव पहल करते हैं। अदन की वाटिका में, शैतान आदम और हव्वा की तलाश में आया था, परन्तु परमेश्वर की आत्मा यीशु को शत्रु का सामना करने और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए रेगिस्तान में ले गया, जहाँ आदम असफल हो गया था (मत्ती 4:1 ) ।

रेगिस्तान में शैतान की रणनीतियाँ वही थीं जो उसने बगीचे में इस्तेमाल की थीं : भ्रम, अनुमान और महत्वाकांक्षा।

सबसे पहले, शैतान ने यीशु के मन में उनकी अपनी पहचान के बारे में भ्रम पैदा करने का प्रयास किया: “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है..” (4:3 ) प्रलोभक शुरू हुआ। “क्या तू सचमुच इसके बारे में निश्चित हैं?” शैतान पूछता है। “यदि परमेश्वर तेरा पिता है, तो वह तेरी बहुत अच्छी देखभाल नहीं कर रहा है। चीज़ों को अपने हाथों में लो-इन पत्थरों को रोटी में बदल दो ।”

फिर दुश्मन ने रणनीति बदल दी और दूसरे तर्क का इस्तेमाल किया। मसीह की पहचान पर सवाल उठाने के बजाय, उसने इस बार इसकी पुष्टि की और परमेश्वर के पुत्र के रूप में मसीह की सुरक्षा को आधार बना के उनकी परीक्षा लेने का प्रयास किया । “यह देखते हुए कि परमेश्वर तेरा पिता है, तू आश्वस्त रह सकता है कि वह परिस्थिति में तेरी देखभाल करेगा। तू ऐसी चीज़ें आज़मा सकता है जिनके बारे में दूसरे लोग सपने में भी नहीं सोचेंगे। तू अपने आप को इस मंदिर से फेंक भी सकता है, और परमेश्वर के स्वर्गदूत तुझको जमीन पर तैरा देंगे। तो आगे बढ़ो – यह करो!”

तीसरा प्रलोभन इस बात से जुड़ा था कि यीशु के लिए अपने पिता की इच्छा का पालन करना कितना महंगा होगा। “सोचो इसकी तुझे कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी ! कोई आसान तरीका तो होना चाहिए । यदि तू मेरी आराधना करे, तो मैं तुझे इस संसार का राज्य दे सकता हूँ।”

शैतान जानता था कि मसीह उसे कुचलने के लिए आए थे, इसलिए उसने वही किया जो भारी विरोध का सामना करने पर कोई भी सेनापति करेगा: उसने युद्धविराम की पेशकश की। वह ख़ुशी से यीशु की शिक्षा से भरी दुनिया में बस जाता, जब तक कि मसीह पिता की योजना के साथ आगे नहीं बढ़ते और क्रूस पर नहीं जाते । परन्तु यीशु मोल-भाव नहीं कर रहे थे।

प्रलोभन का पूरी ताकत से सामना करना

हालाँकि मसीह का स्वभाव पापरहित था, फिर भी उन्होंने जिन परीक्षाओं का सामना किया वह उनसे कही अधिक बड़ी थी जिसे हम कभी नहीं जान सकेंगे।

कल्पना कीजिए कि युद्ध के दौरान तीन वायुसैनिक दुश्मन के इलाके में हवाई जहाज उड़ा रहे हैं। उन्हें मार गिराया जाता है, पकड़ लिया जाता है और फिर पूछताछ के लिए दुश्मन द्वारा ले जाया जाता है। एक-एक करके उन्हें एक अँधेरे कमरे में लाया जाता है।

पहला वायुसैनिक अपना नाम, पद और क्रम संख्या बताता है। वे उस पर ऐसी जानकारी के लिए दबाव डालते हैं जो वह जानता है कि उसे नहीं देनी चाहिए, परन्तु वह यह भी जानता है कि दुश्मन क्रूर है और अंततः वे उसे तोड़ देंगे। तो वह यह सब क्यों झेलें? वह उन्हें वो सब बता देता है जो वह जानता है।

दूसरे वायुसैनिक को लाया जाता है । वह भी अपना नाम, पद और क्रम संख्या बताता है और वे उससे जानकारी मांगना शुरू कर देते हैं। उसने हार न मानने की ठान ली है। इसलिए क्रूरता शुरू होती है। आखिरकार वे उस पर हावी हो जाते हैं। वह टूट जाता है और उन्हें बता देता है जो भी वह जानता है।

तभी तीसरा वायुसैनिक अंदर आता है और अपना नाम, पद और क्रम संख्या बताता है। “तुम मुझे नहीं तोड़ोगे,” वह कहता है ।

“ओह, हाँ हम करेंगे। हमने हर उस आदमी को तोड़ा है जो कभी इस कमरे में आया है। ये बस, कुछ वक्त की बात है; तुम देखोगे।”

क्रूरता शुरू होती है, परन्तु वह टूटता नहीं है । वे तीव्र होते है, फिर भी वह टूटता नहीं। तो वे और तीव्र होते है, जब तक कि यह असहनीय न हो जाये, परन्तु फिर भी वह टूटता नहीं है।

अंततः एक समय ऐसा आता है जब वे वह सब कुछ आजमा चुके होते हैं जो वे जानते हैं। वे कहते हैं, “इससे कोई फायदा नहीं है।” “वह इस कमरे में मौजूद किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह नहीं है। हम इसे नहीं तोड़ सकते।

अब इन तीन वायुसैनिकों में से किसने दुश्मन की पूरी ताकत का सामना किया?

दुश्मन के हमले की पूरी ताकत को जानने वाला केवल वही है जो टूटा नहीं। इसलिए यह कभी मत सोचिए कि मसीह की परीक्षा आपसे कम थी । केवल मसीह ही परीक्षा की पूरी शक्ति को जानते हैं, क्योंकि केवल मसीह ने ही शत्रु के हमले की पूरी ताकत का सामना किया है। हमारी तरह यीशु की भी हर बात में परीक्षा हुई, परन्तु वह निष्पाप थे (इब्रानियों 4:15)।

नेटवर्क से जुड़ना

जिस तरह हम सभी स्वभाव से आदम के वंशज हैं, और इस तरह से उसके साथ जुड़े हुए हैं, उसी तरह विश्वास के द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिए “मसीह के साथ जुड़ना” या, जैसा कि बाइबल कहती है, “उनके साथ एकजुट होना” संभव है। (रोमियों 6:5)

आदम के साथ हमारे मिलन के कारण जिस प्रकार उसकी विफलता का परिणाम हम तक पहुँचता है उसी तरह मसीह के साथ हमरे मिलान के द्वारा उनकी विजय के परिणाम हम तक पहुँचते हैं। “क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे” (रोमियों 5:19)।

पहले मनुष्य ने बगीचे में पाप किया, और इसका परिणाम पूरी मानव जाति के लिए मृत्युदंड था । परन्तु परमेश्वर ने हमें वहाँ नहीं छोड़ा। परमेश्वर के पुत्र ने हमारा मानव शरीर धारण किया और “दूसरा मनुष्य” बन गए (1 कुरिन्थियों 15:47)। इस दूसरे मनुष्य ने हमारे दुश्मन का सामना किया। और जिस प्रकार पहले आदम की असफलता उसके पूरे परिवार के लिए मृत्यु का कारण बनी, उसी प्रकार अंतिम आदम की विजय उन सभी के लिए जीवन का कारण बनी जो उसके हैं (1 कुरिन्थियों 15:45)।

नेटवर्क सिद्धांत की शक्ति

मानव इतिहास दो व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमता है: आदम और मसीह । पूरी मानव जाति आदम से जुड़ी हुई है, और इसलिए हम सभी पाप नामक बीमारी से पीड़ित हैं, जो मृत्यु की ओर ले जाती है। यदि परमेश्वर ने हमें वहाँ छोड़ दिया होता, तो हम आशाहीन होते: “आदम में सब मरते हैं” (1 कुरिन्थियों 15:22)।

परन्तु परमेश्वर ने एक और नेटवर्क बनाने का फैसला किया – उन लोगों का एक नेटवर्क जो यीशु मसीह के साथ एकजुट हैं। वे शारीरिक जन्म से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा के माध्यम से एक नए जन्म से उनसे जुड़े हुए हैं।

जिस प्रकार आदम के पाप के परिणाम उसके नेटवर्क में फैलते हैं, उसके सभी वंशजों के लिए भ्रष्टाचार और मृत्यु लाते हैं, यीशु की धार्मिकता के परिणाम उनके नेटवर्क में चलते हैं, जो उनसे जुड़े हुए सभी लोगों की शाश्वत नियति को बदल देते हैं। “और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसे ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे” (15:22)।

जब हम आदम के पाप पर विचार करते हैं तो परमेश्वर का “नेटवर्क सिद्धांत” विनाशकारी होता है, परन्तु जब हम यीशु की धार्मिकता पर विचार करते हैं तो यह अद्भुत होता है। परमेश्वर के नेटवर्क सिद्धांत का अर्थ है कि एक व्यक्ति की विजय कई लोगों के लिए अनंत जीवन का द्वार खोल सकती है, केवल एक शर्त पर कि वे उससे जुड़े हों।

आप और मैं दोनों स्वभाव से आदम में हैं। क्या आप विश्वास से मसीह में हैं ?

जब हम पश्चाताप और विश्वास के साथ यीशु के पास आते हैं, तो पवित्र आत्मा हमें उनसे मिला देता है। हम अभी भी आदम में हैं—हम कई तरीकों से असफल होते हैं, और एक दिन हम मर जायेंगे। परन्तु जब आप यीशु के पास आते हैं, तो आपके बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप मसीह में हैं। और इसका मतलब है कि आप उनकी विजय में भागीदार होंगे।

बाइबल यह स्पष्ट करती है कि हमारी ही तरह मसीह की भी हर तरह से परीक्षा हुई, फिर भी वह निष्पाप थे (इब्रानियों 4:15)। यीशु के परीक्षाओं और हमारी परीक्षाओं के बीच अंतर यह है कि पाप हमारे अंदर रहता है, और हम अपनी ही बुरी इच्छा से प्रलोभित होते हैं (जेम्स 1:14 ) । मसीह की परीक्षाएं हमसे कम नहीं थीं; वे हमसे भी ज़्यादा थीं। शत्रु द्वारा उन पर फेंकी गई हर चीज़ के विरुद्ध मसीह खड़े रहे – और विजयी हुए। जब आप विश्वास के द्वारा यीशु के साथ एकजुट हो जाते हैं, तो आप अपने सामने आने वाली परीक्षाओं की शक्ति पर विजय पाने में सक्षम हो जायेंगे।

परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।

1. आप क्या सबूत देखते हैं कि मानव जाति पाप के वायरस से संक्रमित हो गई है ?

2. क्या आप ऐसे समय की पहचान कर सकते हैं जब आपकी परीक्षा हुई थी? आप ने उसे कैसे संभाला?

3. आपके अपने शब्दों में, आप जिन परीक्षाओं का सामना कर रहे हैं उनकी तुलना आप उन परीक्षाओं से कैसे करेंगे जिनका सामना यीशु ने किया था?

4. आदम के साथ “नेटवर्क” में होने के कुछ प्रभाव क्या हैं? यीशु के साथ “नेटवर्क” में होने के कुछ प्रभाव क्या हैं?

5. आप क्या सोचते हैं कि कोई व्यक्ति यीशु से “नेटवर्क” में कैसे जुड़ जाता है? क्यों?