क्रूस पर से यीशु की 7 अंतिम वाणियों की व्याख्या

कॉलिन स्मिथ

यह लेख पादरी काॅलिन स्मिथ, जो ‘द आर्चर्ड’ के वरिष्ठ पादरी हैं उनके द्वारा लिखित ‘‘7 वर्ड्स फ्रोम द क्राॅस’’ श्रृंखला से दिए गए शिक्षण पर आधारित है। उनकी शिक्षाओं को सुनने के लिए आप यूटयूव, ओपन द बाइबल ऐप या अपने पसंदीदा पाॅडकास्ट ऐप को खोल सकते हैं।

बाइबल हमें बताती है कि, ‘‘परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।’’ (रोमियों 5ः8)। क्रूस परमेश्वर के प्रेम को कैसे दिखाता या प्रदर्शित करता है?

बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह तो मानते हैं कि यीशु क्रूस पर मरा और फिर से जी उठा, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि परमेश्वर उनसे प्रेम करता है। शायद आपको भी ऐसा ही लगता हो। आप क्रूस के बारे में जानते हैं। आप यह भी जानते हैं कि यीशु ने क्रूस पर कष्ट सहा और मर गया। लेकिन यह आपके लिए स्पष्ट नहीं है कि यह कैसा प्रेम है।

यीशु ने क्रूस पर लटके हुए उन छह घंटों के दौरान सात वाणियाँ बोली, और जब जब – उसने अपनी वाणी बोली उनके द्वारा उसने अपने प्रेम के बारे में कुछ न कुछ प्रकट किया। जब आप क्रूस पर से यीशु की सात अंतिम वाणियों का सारांश स्पष्ट रूप से पढ़ेंगे, तो आप देख और जान पाएँगे कि यीशु आपसे कितना प्रेम करता है, उसका प्रेम इतना है कि आप उसको रोक नहीं पाएँगे।

क्रूस पर से यीशु के अंतिम 7 वाणी

1. ‘‘हे पिता, इन्हें क्षमा कर।’’

‘‘हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।’’ (लूका 23ः34)

सैनिकों ने अपने हथौड़े और लंबी धातु की कीलें लीं और उन्होंने परमेश्वर के पुत्र को लकड़ी के एक खम्बे पर कीलों से ठोंक दिया। उन्होंने उस लकड़ी के खंभे को सीधा खड़ा किया और उस खंभे को जमीन में एक गड्ढा खोदकर उसमे खड़ा कर दिया। तब यीशु ने क्रूस पर से अपनी पहली वाँणी बोली, ‘‘हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं’’ (लूका 23ः34)।

जिन लोगों ने यीशु को क्रूस पर कीलों से ठोंका था, उन्हें नहीं लग रहा था कि वे कुछ गलत कर रहे हैं। उनकी अन्तरात्मा पर कोई बोझा नहीं था। उन्हें नहीं लग रहा था कि उन्हें किसी भी बात के लिए परमेश्वर से क्षमा मांगने की आवश्यकता है। वे मानव जाति के इतिहास में सबसे भयानक पाप कर रहे थे, और यीशु ने कहा कि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।

इससे हमें एक बहुत महत्वपूर्ण बात का ज्ञात होता है कि आप सही और गलत के बारे में अपनी भावनाओं के आधार पर यह नहीं जान सकते कि पाप क्या है। यदि आप अपने अंर्तज्ञान पर भरोसा करते हैं, तो आप पाप करेंगे और पाप करते रहेंगे और आपको इसका पता भी नहीं चलेगा। हमें परमेश्वर की आवश्यकता है ताकि वे हमें बता सके कि पाप क्या है, और वह ऐसा करता भी है जो हमें बाईबल से पता चलता है।

यीशु ने कहा, ‘‘अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।’’ (मत्ती 5ः44), और यही वह यहाँ कर रहा है। जो लोग उस पर क्रूरता बरसा रहे थे, वे ही लोग उसके हृदय में थे। शायद पहले कभी किसी ने इन रोमन सैनिकों के लिए प्रार्थना नहीं की थी, लेकिन यीशु ने उनके लिए प्रार्थना की। जब कोई और आपके लिए प्रार्थना नहीं कर रहा होता है उस समय भी यीशु आपके लिए प्रार्थना कर रहा होता है।

2. ‘‘आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।’’

‘‘मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।’’ (लूका 23ः43)

यीशु के साथ दो अपराधियों को क्रस पर चढ़ाया गया था, एक उसके दाहिने और दूसरा उसके बाएँ। ‘‘जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, ‘ क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!’’’’ (लूका 23ः39)। यहाँ यह आदमी अपने जीवन के अंतिम पडाव पर है। वह पूरी तरह से खोया हुआ है, वह पूरी तरह से असहाय है, और वह अभी भी परमेश्वर से नाराज है।

दूसरे अपराधी ने भी स्वंय को अपराध की जिंदगी में झोंक दिया था। वह अनंत काल से बस कुछ ही घंटे दूर था। जल्द ही उसे परमेश्वर के न्याय का सामना करना था। लेकिन उसके लिए अब कुछ बदल गया था। उस आदमी की आत्मा पर एक सन्नाटा सा छा गया। शायद वह अपने जीवन में पहली बार स्वंय के जीवन की वास्तविक स्थिति के बारे में सोच रहा था। पृथ्वी उलटी घूम रही थी, और अनंत काल क्षितिज पर मँडरा रहा था।

अब वह आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ देखता है कि दिन खत्म होने से पहले, वह परमेश्वर के सामने खड़ा होगा और अपने जीवन का हिसाब दे रहा होगा। जैसे-जैसे उसके दिमाग में ये विचार चल रहे थे, उसने दूसरे ड़ाकू की आवाज सुनी जो यीशु को कोस रहा था, और उसने कहा, ‘‘क्या तू परमेश्वर से नहीं डरता?’’ (लूका 23ः40)।

फिर वह यीशु की ओर फिरा और कहा, ‘‘जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना’’ (लूका 23ः42)।  ‘‘उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।’’ (23ः43)। यह एक असाधारण कहानी है। एक व्यक्ति जो नरक के लिए नियत है और अनंत विनाश के कगार पर है, उसे अनंत जीवन की खुशियों और विशेषाधिकारों पर पूरी छूट दी गई। अगर इस व्यक्ति के लिए आशा थी, तो आपके लिए और हर उस व्यक्ति के लिए आशा है जिससे आप कभी मिलेंगे।

3. ‘‘हे नारी, देख यह तेरा पुत्र है!’’

‘‘यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा, ‘‘हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।’’ तब उस चेले से कहा, ‘‘देख, यह तेरी माता है।’’ और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया।’’ (यूहन्ना 19ः26-27)

यीशु और मरियम के बीच का रिश्ता बदल गया। शरीर के आधार पर यीशु पिछले 33 वर्षों से, मरियम का पुत्र रहा है। लेकिन वह परमेश्वर का पुत्र भी था। उसने मानव शरीर धारण किया, जिसे उसने अपनी माँ से प्राप्त किया, ताकि वह हमारा उद्धारक बन सके। इसी कारण वह संसार में आया और इसी कारण वह अब क्रूस पर है।

जब मरियम क्रूस के नीचे खड़ी थी, वह अपने दुःख और पीड़ा में, चिल्ला रही होगी, ‘‘मेरा पुत्र, मेरा पुत्र, मेरा पुत्र३।’’ और यीशु कह रहे हैं, ‘‘अब से तुम मुझे अपना पुत्र मत समझो। हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है। अब से यूहन्ना तुम्हारे जीवन में वह स्थान लेगा।’’

तो फिर, उसे यीशु को किस तरह से देखना चाहिए था? अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में। जब स्वर्गदूत ने मरियम को जन्म लेने वाले बच्चे के बारे में बताया, तो उसने कहा, ‘‘और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर से आनन्दित हुई’’ (लूका 1ः47)। उसने हमेशा परमेश्वर को अपने उद्धारकर्ता के रूप में देखा था। तो, परमेश्वर उसे कैसे बचाएगा?

उत्तरः यीशु क्रूस पर चढ़ गया और उसने मरियम से जो जीवन लिया था, उसे त्याग दिया। उसका शरीर टूट गया। उसका लहू बहा दिया गया। मरियम का पुत्र मर गया, और अपनी मृत्यु में वह उसका उद्धारकर्ता बन गया। मरियम एक पुत्र को खो रही थी जिसका स्थान कोई नहीं ले सकता था। और वह एक अतुलनीय उद्धारकर्ता को पा रही थी।

4. ‘‘हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?’’

तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, ‘‘एली, एली, लमा शबक्तनी?’’ अर्थात् ‘‘हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?’’ (मत्ती 27ः46, मरकुस 15ः34)

भजनसं हिता 22ः1 का पूरा होना।

यीशु को लगभग सुबह नौ बजे क्रूस पर चढ़ाया गया था, और नौ बजे से दोपहर के बीच उसने सिर्फ तीन बार बोला। अपने पिता सेः ‘‘उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।’’ ड़ाकू सेः ‘‘आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।’’ और अपनी माँ और अपने शिष्य सेः ‘‘हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र… देख, यह तेरी माँ।’’

तीन घंटों के लंबे अंतराल में यीशु ने केवल तीन वाक्य ही बोले। उस बाकी समय में, यीशु वहीं लटका हुआ चुपचाप पीड़ा सह रहा था। तीन कठिन घंटे, उसे हर मिनट अनंत काल की तरह लग रहे हांेगे। फिर दोपहर के समय, अंधकार ने देश को ढक लियाः ‘‘अब छठे घंटे (बारह बजे), से लेकर नौवें घंटे (तीन बजे), तक सारे देश में अंधकार छाया रहा’’ (मत्ती 27ः45)।

तीन घंटों तक यीशु ने लोगों के द्वारा दर्द और उपहास सहा, लेकिन अब वह उससे भी ज्यादा बुरी स्थिति में डूब गया। यीशु ने क्रूस ही पर नरक के सभी आयामों में प्रवेश कर दुख उठाया। नरक एक भावनात्मक पीड़ा है, सबसे काले अंधकार में, शैतानी शक्तियों से घिरा हुआ, परमेश्वर के न्याय के अधीन, परमेश्वर के प्रेम की पहुँच से दूर। यीशु ने क्रूस पर नरक की ये सारी पीड़ाएँ सहीं। और उसने ऐसा इसलिए किया ताकि हम कभी न जान सकें कि ये पीडा कैसी होती है।

5. ‘‘मैं प्यासा हूँ’’

इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका, इसलिए कि पवित्रशास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो कहा, ‘‘मैं प्यासा हूँ।’’ (यूहन्ना 19ः28)

भजनसं हिता 22ः15 का पूरा होना।

यीशु छह घंटों तक क्रूस पर रहा, और बीतते हर घंटे के साथ उसकी पीड़ा बढ़ती गई। उसके शरीर में बुखार फैल गया तथा उसके हाथों व पैरों में ठुकी कीलों के आस-पास के घाव उसके शरीर के वजन के कारण और भी चैड़े होते गए। उसके शरीर का पानी सूख गया। उसे ऐसा लगा होगा जैसे उसका पूरा शरीर जल रहा हो।

वही यीशु जिसने कहा, ‘‘यदि कोई प्यासा हो, तो मेरे पास आए और मुझ से पीए’’ (यूहन्ना 7ः37) अब कह रहा है, ‘‘मैं प्यासा हूँ।’’ यह एकमात्र समय है जब यीशु ने क्रूस पर से अपनी पीड़ा का उल्लेख किया था। उसके अन्य शब्द दूसरों को क्षमा करने, स्वर्ग खोलने, अपनी माँ की देखभाल करने, नरक की पीड़ा को प्रकट करने, प्रायश्चित की घोषणा करने और मृत्यु में पिता को अपनी आत्मा सौंपने के लिए कहे गए थे। लेकिन अब इन शब्दों में, वह अपनी शारीरिक पीड़ा के बारे में बोल रहा है।

हम सभी विभिन्न प्रकार से कष्ट सहते हैं, लेकिन आपके जीवन में किसी न किसी समय ऐसा समय आएगा जब आप इतने अघिक कष्ट सहेंगे कि आपकी सहनशक्ति की सीमा समाप्त हो जाऐगी। यीशु ने वो पीड़ा सही है। उसने दुख झेला, और इसीलिए आज जो कष्ट में हैं यीशु उन लोगों की मदद करने में सक्षम है। यीशु को अपने दुख के कारण प्यास लगी। इसलिए, वह उन लोगों की मदद कर सकता हैे जो कष्ट में हैं।

6. ‘‘पूरा हुआ।’’

जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा ‘‘पूरा हुआ’’ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए।’’ (यूहन्ना 19ः30)

यीशु ने कहा, ‘‘पूरा हुआ।’’ क्या पूरा हुआ? 1. उसकी पीड़ा की लंबी रात 2. उसकी आज्ञाकारिता का पूरा क्रम 3. उसके शत्रु के साथ निर्णायक युद्ध और 4. उसके प्रायश्चित का संपूर्ण कार्य।

यह यीशु की पीड़ा का अंत था। यीशु पीढ़ा को इतना जानता है जितना किसी ने कभी नहीं जाना होगा, लेकिन अब वह पीड़ित नहीं है। उसने अपनी पीडा को पूरा कर लिया है। अब वह समााप्त हो चुकी है। अब वह कब्र में भी नहीं है। वह स्वर्ग में पिता के दाहिने हाथ बैठा है, जहाँ से वह हमारे लिए मध्यस्थता करता है।

यह महत्वपूर्ण बात है। इस पीड़ित संसार को एक उद्धारकर्ता की जरूरत है जो पीड़ा के बारे में जानता हो। लेकिन वह उद्धारकर्ता जो पीड़ा से अभिभूत नहीं है, वह हमारे किसी काम का नहीं। हमें एक ऐसे उद्धारकर्ता की जरूरत है जिसने पीड़ा पर विजय प्राप्त की हो। यीशु ही एक मात्र ऐसा उद्धारकर्ता है जो एक समय अवर्णनीय पीड़ा में डूबा हुआ था, लेकिन वह इससे पराजित नहीं हुआ। वह उस पीड़ा से बाहर आया और उस पर विजयी हुआ।

7. ‘‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ!’’

और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, ‘‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।’’ और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।’’ (लूका 23ः46)

भजनसं हिता 31ः5 का पूरा होना।

यीशु मृत्यु से भयभीत नहीं था। मृत्यु ने उसे पराजित नहीं किया। उसने कहा, ‘‘कोई उसे मुझसे छीनता नहीं… मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है।’’ (यूहन्ना 10ः18)। यीशु का जीवन लिया नहीं गया था। यह दिया गया था। उसने स्वंय को मृत्यु में दे दियाः ‘‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।’’

उसकी ऊँची आवाज का यह महत्व है। क्या आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ थे जब वह मर रहा हो? मृत्यु के समय कोई भी ऊँची आवाज में नहीं बोलता। लेकिन यीशु ने बोला। उसने विजय के साथ मृत्यु में प्रवेश किया। और मरकुस आगे कहते हैं, ‘‘जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था, जब उसे यूँ चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा, तो उसने कहा, ‘‘सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था!’’ (मरकुस 15ः39)। क्या आप उसकी इस महिमा को समझ रहे हैं? कोई भी व्यक्ति कभी भी इस तरह नहीं मरा।

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